चाँद की चाँदनी
सज धज के निकलो ना जाने जिगर ,
चांद की चांदनी हो रही बेअसर।
ना बादल घनेरे न बीजुरी असर,
चांद की चांदनी हो रही बेअसर,
सज धज के निकलो ना जाने जिगर।
वो कजरारी आंखें वो बालों पे गजरा,
तेरे रुख़ से गिरता वो अंगूरी मदिरा,
मेरे दिल पे गिरती है बन के कहर।
सज धज के निकलो न जाने जिगर,
चांद की चांदनी हो रही बेअसर।
यौवन पे तेरे दुपट्टे का पहरा,
लोचन हैं तेरे जो सागर से गहरी,
मौज की भांति जाऊं मैं इसमें बिखर।
चांद की चांदनी हो रही बेअसर,
सज धज के निकलो न जाने जिगर।
कमर तेरे लचके की सावन की डाली,
बशर के जहन में भी लाये लहर।
सज धज के निकलो न जाने जिगर,
चांद की चांदनी हो रही बेअसर।
इबादत करूंगा मैं पाकर के तुझको,
खुदा ने नवाजा मुझे हमसफर।
सज धज के निकलो ना जाने जिगर।
ख्वाबों में मैंने तो बांधा है सेहरा,
ना मिल पाई मुझ को तो पी लूं जहर।
सज धज के निकलो न जाने जिगर,
चांद की चांदनी हो रही बेअसर।2
अनिल कुमार मंडल।
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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