पंचतत्व की काया
पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान।
मरने से पहले रे मूरख भरले इसमें जान ।
बचपन छोड़ जवानी आई बन गया तू बलवान।
पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान।
धन दौलत सब यही रहेगा काहे का अभिमान।
जिसके खातिर महल सजाया पहुँचाये शमशान।
पंचतत्व की काया लेकर भटक गया इंसान।
रिश्ते नाते सभी है झूठे,कर्म तेरे हैं महान।
नेक कर्म से कर पाए,बैकुंठ भी अपने नाम
पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान।
मरने से पहले रे बंदे भर दे उसमें जान।
कर्म तुम्हारे सद्गुण होंगे,सत्य कर रख ले ध्यान।
एक अटल है सत्य जगत,में बाकी सब बेजान।
मरने से पहले रे बंदे,भर ले खुद में जान।
पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान।
सदियों तक तेरे कर्मों का करेंगे लोग बखान।
तेरे मौत के बाद भी होंगे,तेरे ही जयगान।
पंचतत्व की काया लेकर मत बनना शैतान।
बनने से पहले रे बंदे भर ले उसमें जान
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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