रनिंग
पैरों में छाले पड़ गए, पर भाग रहे थे।
रातों में निशाचर की तरह जाग रहे थे।
तकरीर अब वो देते हैं लॉबी पे बैठकर,
जो कल तलक नौकरी में भी,बेदाग रहे थे।
वो कहते हैं कि भत्तों पे अब हक नही मेरा,
जिनके घरों में भत्तों से ही बाग लगे थे।
शायद वो रनिंग छोड़ के गैरों के हो चले,
जिनके रनिंग से गहरे कभी लाग रहे थे।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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