दिनकर की मिट्टी से
मैं दिनकर की माटी से,कुछ खास बताने निकला हूँ।
भारत था सोने की चिड़िया,लाश बताने निकला हूँ।
मुगल, हुण, फ्रांसीसी आए सब लगे थे देश चुराने में ,
वो तभी हमें लूट पाए थे,गद्दार थे कई घराने में ।
अंग्रेजों ने भी खूब लूटा,मीर जाफर थे कई जमाने में ।
चार लाख बतिष हजार का, खून है ये दिन लाने में,
सैकड़ों बरस लगा दी उसने ,सन 47 को लाने में ,
काले को सत्ता पाने में ,गोरों से देश छुड़ाने में ।
तुम कहते हो आजादी आई है,गांधी के चरखा चलाने में ,
इतिहास ही तुमने बदल डाली,चापलूसी के गीत सुनाने में।
काले अब देश को लूट रहे,सच कहो अगर यह झूठ लगे।
यह देश फिर से सज सकता था, जो लगे पेड़ वो ठूठ लगे ,
ये पूर्ण स्वराज का सपना भी छल लगता आज बताने में।
गोरों ने हमको सत्ता दी ,क्यों शर्म है तुम्हें जताने में ,
गौरो से ज्यादा काले ने ,यह देश डुबो दी खाने में ।
समझौते में फिर देश फंसा,ये लगे हैं कर्ज उठाने में ,
आर्थिक गुलामी निकट लगे,अमेरिका के बहकाने में ।
बस इतनी सी बातें कह ,मंत्रास बताने निकला हूं ।
मैं मिट्टी की सौगंध लिए कुछ खास बताने निकला हूं ।
भारत था सोने की चिड़िया ,लाश बताने निकला हूँ।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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