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Showing posts from March, 2021

जज्बा हमारे दिल में हैं

 पाएंगे बैकुंठ को, जज्बा हमारे दिल में हैं। खून से खेलेंगे होली, अगर वतन मुश्किल में हैं। मुगलों को रोक था हमनें, जोर पे तलवार से, और गोरों को भगा दी, नैन के अंगार से। काले ने मंसूबे साधे, देश को नीलाम की, होशले जो बढ़ गए इस मुल्क के बईमान की। माँ भारती के पुत्र हम,समझाएंगे तकरार से। जो न माने सर कलम कर जाएंगे कटार से। फिर ये देखेंगे लहू क्या, गद्दारे  कातिल में है। खून से खेलेंगे होली, अगर वतन मुश्किल में हैं। मौत सब को एक दिन लेगी यहाँ आगोश में, हम भी गाये गीत अपने मौत की परितोष में। मौत को कर ले विजय अरमा हमारे दिल में है खून से खेलेंगे होली, अगर वतन मुश्किल में हैं।                         अनिल कुमार मंडल                                       रेल चालक/ ग़ाज़ियाबाद

जम्हूरियत

जम्हूरियत में इतना तो जरूर हो गया। पाते ही सत्ता सब यहाँ मगरूर हो गया। पीपल था एक जिनसे सबकी आश बंधी थी, सत्ता मिली पीपल वही ख़जूर हो गया। मतदान किया था शहर ने अपना समझ के, इंसान वो शहर से बहुत दूर हो गया। गिरगिट भी इतनी जल्दी कहा रंग बदलता, जम्हूरियत में किस्सा ये मशहूर हो गया। किस-किस से गुफ्तगू करू सब ने यही कहा, वोट दे के मुझसे कुछ कसूर हो गया। भूखी रही जनता मगर विकास हो गया, लोकतंत्र में बदलाव ये हुजूर हो गया। हम आम लोग हैं सभी सत्ता के सताये। पाते ही सत्ता जो यहाँ मगरूर हो गया।2            अनिल कुमार मंडल                रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

अफ़साना हिंदुस्तान की

 झूठी कसमें, झूठे वादे, झूठी पाते शान की, बैतरणी जो पार करेगा,मान हो उस इंसान की। कुछ लोगो को कहा फ़िक्र हैं,भारत के अपमान की। अफसाना जो लिख रहे देखों,बेच के हिंदुस्तान की। वो कहते मुझे देशद्रोही,हमनें जो प्रश्न उठाये हैं। खुद वो चिंता नहीं हैं करते,भूखे हिंदुस्तान की। हम भी जो ख़ामोश रह गये, हमको दुनिया कोसेगी। हमनें गुलामी लाकर दी हैं, स्वर्णिम हिंदुस्तान की। वो तो ठहरे झूठे,फरेबी, अपना कोई फर्ज तो था। जिस मिट्टी से तन को सींचा,उनका मुझपे कर्ज़ तो था। पर मेंरी चुप्पी के कारण,जीत हुई शैतान की। आने वाली नश्ले कहे हमें,कायर हिंदुस्तान की। आओ मिलकर करें क्रांति,जय हो हिंदुस्तान की। अफ़साना वो लिख नहीं पाए,बेच के हिंदुस्तान की।2                            अनिल कुमार मंडल                      लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

हुस्न का असीर

 मैं तो उनके हुस्न का असीर बन गया। नजरें मिला के कह गई,तकदीर बन गया। महफ़िल में सरे आम वो ऐलान कर गई, की मैं तो उनके अब्बा की जागीर बन गया। चाहत भी मेरी उनसे लगातार बढ़ गई। प्यादा मैं मोहब्ब्त का अब वजीर बन गया। उसकी अदा को देखते ही में तो लुट गया बिखरी थीं उनकी जुल्फ़े जो जंजीर बन गया। मुफलिस में जैसे-तैसे समय बीत रहा था, पाकर उसे तो आज मैं अमीर बन गया। वो बेरुखी से तन्हा मुझे छोड़ क्या गई। नवाब था गलियों का मैं फकीर बन गया। मुझको खबर न थी की जमाना बदल गया। दिल तोड़ना ही हुस्न की तासीर बन गया।             अनिल कुमार मंडल         रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

तुम भी साथ निभाओ न

 जब मैं गाऊं गीत मिलन के, तुम भी साथ निभाओ न  तन्हाई में दिन नहीं कटता, पास मेरे तुम आओ न। नैन खुली मैं झाड़ू-पोछा, तुम खुद ही जग जाओ न। सज-धज कर ऑफिस से पहले, मुझको गले लगाओ न। वक़्त को देखो किसने रोका, हॅस के घड़ी बिताओ न। जब मैं गाऊ गीत मिलन के, संग में तुम भी गाओ न। भाग दौड़ की हैं जिंदगानी, दुःख में तुम घबराओ न। जग हैं माया, नेक कर्म कर,अपना फर्ज निभाओ न। सुख-दुःख आनी जानी छाया, देख मुझे मुस्काओ न। जब मैं गाऊं गीत मिलन के, तुम भी साथ निभाओ न। तन्हाई में दिन नहीं कटता, पास मेरे तुम आओ न।                       अनिल कुमार मंडल                     रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

साली आने वाली हैं

अबकी फागुन भैया जी की, साली आने वाली हैं। गाल गुलाबी, नैन शराबी, फूलों की नाजुक डाली हैं। अबकी फागुन भैया जी की, साली आने वाली हैं। दिखने में भोली-भाली हैं, बकती गंदी गाली  हैं। अबकी फागुन भैया जी की, साली आने वाली हैं। चाल ओकर बा हिरनी जैसी, कान में लंबी बाली हैं। होंठ पे लाली, जुल्फें काली ये तो लड़की जाली हैं। अबकी फागुन भैया जी की, साली आने वाली हैं। फटी जीन्स पे चुस्त टॉप हैं, लड़की नहीं मवाली हैं। भारत की ये हो नहीं सकती, जो हैं तो खोपड़ी खाली हैं। शर्म ,हया की बात जो छेड़ो, सामत आने वाली हैं। दाल रोटी न इसको भाती, पिज़्जा, बर्गर वाली हैं।अबकी फागुन भैया जी की, साली आने वाली हैं। नाज से जिसने पाला इनको, उनकी थाली खाली हैं। माता बापु देशी इनकी, बीटिया फैशन वाली हैं। जैसा मैंने फ़िल्म में देखा, वैसी हमरी साली हैं। अबकी होली भाभी जी की, सिस्टर आने वाली है। अबकी फागुन भैया जी की, साली आने वाली हैं।                                      अनिल कुमार मंडल             ...

झरने की तरह

जीवन को जियो झरने की तरह,विघ्नों से लड़ लड़ने की तरह। हैं कौन विघ्न जो रोकेगा,तू जीतेगा जग chokegaa चलना बस तेरा काम रहे,कही एक पल न आराम रहे  तेरे कर में होगा,धन धान्य तेरे घर में होगा विपदायें चरण पखारेगा,ईश्वर तुझे राह दिखयेगा। जिद ठान तुझे बस चलना हैं,विघ्नों में तुझे उबलना हैं। इतिहास तुझे जो रचना हैं,मरकर जो जिन्दा बचना है। झरनों की तरह मचलता चल,जो राह में आएगी बाधा, तु ज़िद कर हो जाये आधा।तु रुकना नही वहाँ डरकर, एक नए जोश से छेड़ समर,विघ्नों को ले जा बनके भवंर। छोटा हो या हो बड़ा भूधर,तु जग जीते हो वीर कुंवर। विपदा में जिसने काम किया जग में उसने ही नाम किया। इस नश्वर तन को छोड़ यहाँ,सब लोक ही अपने नाम किया। फिर इसीलिए मैं कहता हूँ,जीवन को जियो झरने की तरह, विघ्नों से लड़ लड़ने की तरह।जीवन को जियो झरने की तरहl                अनिल कुमार मंडल             रेल चालक, ग़ाज़ियाबाद

संयुक्त परिवार

तीन चक्र में घिरा था अपना,भारत का संयुक्त परिवार। कितना मोहक कितना सुंदर,बसा था सबका घर परिवार।  प्रथम चक्र में गैया मैया, करती रोगाणु पर वार। दूजा चक्र में तुलसी मैया,वायु रोग में करें प्रहार।  तीसरा चक्कर था अपना रसोई,जिस से बहती रस की धार। इतने से सबको मिलता था,स्वस्थ शरीर में स्वस्थ विचार। छोटी-छोटी तकरारे थी, आपस में था अद्भुत प्यार।  कितना मोहक कितना सुंदर,बसा था सबका घर परिवार। सह निवास,सह रसोई थी तब,सबका होता था सत्कार।  बूढ़ों को सम्मान था मिलता,होती थी उनकी जय कार।  जब से तीनों चक्र टूटे हैं,बदल गया सब का परिवार। तभी से पश्चिम के चक्कर में,फँस गया भारत का परिवार।  उसी समय से चलन बढ़ा दी,छोटा हो सुखी परिवार।  दादा-दादी,काका-काकी,छूट गया अपनों का प्यार। जिनकी कहानी से मिलता था,बचपन से सबको सुविचार।  जब से यह परिवार टूटा है,बढ़ गया देखो अत्याचार।  कितना मोहक कितना सुंदर,बसा था सबका घर परिवार।  तीन चक्र में घिरा था अपना,भारत का संयुक्त परिवार।                   अनिल कुमार मंडल   ...

जुमले की झंकार

हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में। इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में। हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में। निर्दय होकर काट रहे हैं, धार नहीं हैं कटार में। इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में। रोटी, पानी, दवा भी महंगी,सांस न मिले उधार में। हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में। नौकरी छुटी,बीबी रूठी,जीवन हैं मंझधार में। इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में। चालक देश के बदल रहे हैं,कमी हैं जबकि कार में। हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में। चंगु, मंगू दोनों एक हैं, समझे ये विस्तार में। इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में। जरदारी हो या हो मुफलिस, कौन बचा संसार में। हम तो भैया विकट लुटे हैं,जुमले की झंकार में। जीने की जहाँ होड़ लगी हैं, हम भी खड़े कतार में। इससे तो बेहतर थे भाई, हम पिछ्ली सरकार में।                                  अनिल कुमार मंडल                           गव्यसिद्ध, रेल चाल...

जिंदगी क्या?

जिंदगी क्या ?तेरी मेरी गजल ।कभी सरल तो कभी गरल । जब गम का ये सागर लाए, सुख की घड़ियां,जाती बदल। जिंदगी क्या?तेरी मेरी गजल।सुखमय जीवन क्षण में बीते,  दुख की घड़ी हो लंबी गजल। जिंदगी क्या ?तेरी मेरी गजल,  कभी सरल तो कभी गरल। कभी आंखो में आंसू भरते,  कभी लाते ये खुशी के पल। एक भाव से गाने वाले,  हो जाते हैं यहां सफल।जिंदगी क्या? तेरी मेरी ग़ज़ल, कभी सरल तो कभी गरल।हम जो इसको सीख ले गाना, सुख में गुजरे सारे पल, जिंदगी क्या?तेरी मेरी गजल, कभी सरल तो कभी गरल।सच मानो या मिथ्या साथी, कहता हूँ मैं बात अटल। जिंदगी क्या ?तेरी मेरी ग़ज़ल कभी सरल तो कभी गरल।           अनिल कुमार मंडल      गव्यसिद्ध, रेल चालक, कवि                     9717632316

चाल बदल दू

आँख मार के चाल बदल दू, मैं लड़की नादान हूँ। सज-धज के जो शहर में निकलूँ, कुछ कहते में जान हूँ। आँख मार के चाल बदल दू, मैं लड़की नादान हूँ। लौंडे देख के सीटी मारे, बुढ़वन की अटकी प्राण हूँ। अपना कोई जात, धर्म नहीं, हुस्न की में पहचान हूँ। आँख मार के चाल बदल दू, मैं लड़की शैतान हूँ। रूप,रंग की चर्चा में मैं, काटती सबकी कान हूँ। ना मैं गोरी न मैं काली, सुंदरता की खान हूँ। आँख मार के चाल बदल दू, मैं लड़की नादान हूँ।        अनिल कुमार मंडल   गव्यसिद्ध, रेल चालक, कवि         9717632316

सफर सुहानी

आओ तुमको मैं लेके चलु,एक सफर सुहानी ओर सनम। जहां हम तुम और खामोशी हो, और मौसम हो चितचोर सनम।  हिमकर का जहां बसेरा हो,रुक-रुक बादल ने घेरा हो, जहां तुम ना कभी क्रोधित होकर,बैठो मुझसे मुख मोड़ सनम।  आओ तुमको मैं लेके चलु,एक सफर सुहानी और सनम। जहां जेठ की गर्मी छांव लगे, मखमली भी नंगे पांव लगे,  जब तेरी मेरी दूरी बढ़े ,खीचू आंचल का कोर सनम। आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहानी और सनम।  जब हम तुम हो तन्हाई में, फिर बारिश हो घनघोर सनम। जब बरखा धीमी पड़ जाए,नाचे पपीहा ओर मोर सनम। आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहाना और सनम।  जहां सर्द हवाएं बहती हो, तुम जैसे परियां रहती हो,  जहां एक-दूजे में खोते ही,पल में हो जाए भोर सनम। आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहाना और सनम, विश्वास भरा हम दोनों का,बस टूटे ना ये डोर सनम। आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहाना और सनम।           अनिल कुमार मंडल      गव्यसिद्ध, रेल चालक,कवि              ग़ाज़ियाबाद

सुख-दुःख का सागर

जीवन हैं सुख दुःख का सागर,काहे किसी से वैर करें। तुम जो साथ निभाओ प्रियतम, हँस के सारे सैर करें। जनम लिया था जब धरती पर, गम से मैं अंजान रहा, बचपन बीता खेल-कुद में, थोड़ा सा नादान रहा। अब जब निष्ठुर चढ़ी जवानी,रोटी में उलझी जिंदगानी, देश, धरम की कौन हैं सुनता, पहले पेट की खैर करें। जीवन हैं सुख दुःख का सागर,काहे किसी से वैर करें। एक बात मेरी मान लो प्रियतम, हम बैकुंठ की सैर करें। जितनी लंबी चादर हो,उतना ही लंबा पैर करें। जीवन हैं सुख दुःख का सागर,काहे किसी से वैर करें।                       अनिल कुमार मंडल                    रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

बैंक हमारा

बीते दिन को याद करू,आँचल में बैंक हमारा था। कभी वो खाली होती न थी,गठरी बड़ा ही न्यारा था। याद हैं माँ उस दिन की बातें,भालुवाला आया था। मिट्टी में मैं लेटा ,रोया ,बटुआ ये खुलवाया था। दो चवन्नी तुमनें दी थी,और फिर ये समझाया था। तीसी बेच के बापु मेरा,दस रुपये लाया था। बापु की मेहनत की कमाई,अश्रु पे मेरे वारा था। मेरे अश्रु के बहते ही,खुलती थी बैंक हमारा था। याद करू उस दिन की बातेंवही तो वक़्त हमारा था। बीते दिन को याद करू,आँचल में बैंक हमारा था। कभी वो खाली होती न थी,बटुआ बड़ा ही न्यारा था।              अनिल कुमार मंडल            रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद