सुख-दुःख का सागर

जीवन हैं सुख दुःख का सागर,काहे किसी से वैर करें।
तुम जो साथ निभाओ प्रियतम, हँस के सारे सैर करें।
जनम लिया था जब धरती पर, गम से मैं अंजान रहा,
बचपन बीता खेल-कुद में, थोड़ा सा नादान रहा।
अब जब निष्ठुर चढ़ी जवानी,रोटी में उलझी जिंदगानी,
देश, धरम की कौन हैं सुनता, पहले पेट की खैर करें।
जीवन हैं सुख दुःख का सागर,काहे किसी से वैर करें।
एक बात मेरी मान लो प्रियतम, हम बैकुंठ की सैर करें।
जितनी लंबी चादर हो,उतना ही लंबा पैर करें।
जीवन हैं सुख दुःख का सागर,काहे किसी से वैर करें।
                      अनिल कुमार मंडल 
                  रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद



Comments

Popular posts from this blog

Best hindi poem -मजदूर

पुस में नूतन बर्ष

देख तेरे संसार की हालत