सफर सुहानी

आओ तुमको मैं लेके चलु,एक सफर सुहानी ओर सनम।
जहां हम तुम और खामोशी हो, और मौसम हो चितचोर सनम। 
हिमकर का जहां बसेरा हो,रुक-रुक बादल ने घेरा हो,
जहां तुम ना कभी क्रोधित होकर,बैठो मुझसे मुख मोड़ सनम। 
आओ तुमको मैं लेके चलु,एक सफर सुहानी और सनम।
जहां जेठ की गर्मी छांव लगे, मखमली भी नंगे पांव लगे, 
जब तेरी मेरी दूरी बढ़े ,खीचू आंचल का कोर सनम।
आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहानी और सनम। 
जब हम तुम हो तन्हाई में, फिर बारिश हो घनघोर सनम।
जब बरखा धीमी पड़ जाए,नाचे पपीहा ओर मोर सनम।
आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहाना और सनम। 
जहां सर्द हवाएं बहती हो, तुम जैसे परियां रहती हो, 
जहां एक-दूजे में खोते ही,पल में हो जाए भोर सनम।
आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहाना और सनम,
विश्वास भरा हम दोनों का,बस टूटे ना ये डोर सनम।
आओ तुमको मैं लेके चलूं,एक सफर सुहाना और सनम।

          अनिल कुमार मंडल
     गव्यसिद्ध, रेल चालक,कवि
             ग़ाज़ियाबाद

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