चाल बदल दू
आँख मार के चाल बदल दू,
मैं लड़की नादान हूँ।
सज-धज के जो शहर में निकलूँ,
कुछ कहते में जान हूँ।
आँख मार के चाल बदल दू,
मैं लड़की नादान हूँ।
लौंडे देख के सीटी मारे,
बुढ़वन की अटकी प्राण हूँ।
अपना कोई जात, धर्म नहीं,
हुस्न की में पहचान हूँ।
आँख मार के चाल बदल दू,
मैं लड़की शैतान हूँ।
रूप,रंग की चर्चा में मैं,
काटती सबकी कान हूँ।
ना मैं गोरी न मैं काली,
सुंदरता की खान हूँ।
आँख मार के चाल बदल दू,
मैं लड़की नादान हूँ।
अनिल कुमार मंडल
गव्यसिद्ध, रेल चालक, कवि
9717632316
Kya baat h
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