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Showing posts from April, 2021

मौत का विराम

जीवन पे यहाँ मौत का विराम देखिए, एक दौर चल रहा हैं सरे आम देखिए। मुर्दे भी ढूंढते हैं जमी दफन के लिए, हुजूम से सुना पड़ा समसान देखिए। शहर बधिर हो गया और मूक बढ़ गए। रुका नहीं जम्हूरियत का जाम देखिए। जम्हूरियत लोग जब शरीफ थे यहाँ। जीवन से अपने देते थे पैगाम देखिए। बसन से ज्यादा आज जब कफन बिके यहाँ, सब दूर से कहते हैं राम-राम देखिए। माँ बाप दफन हो रहे गंगा की रेत मैं, कैसे मिलेगा उनको मोक्ष धाम देखिए। समय के साथ देखिए सबकुछ बदल गया। नेता हुआ हैं सत्ता का गुलाम देखिए। जनता को दे दिया हैं इसने भूख, बेबसी, संधी से किया देश ये नीलाम देखिए। हर आम आदमी यहाँ पे खास हो गया, सब अर्थ के हाथों हैं, लगाम देखिए। युवा भी सो गया हैं,फटी जीन्स पहन के, कैसे पहल हो अब,कोई संग्राम देखिए। तन मन से देश गोरों का ग़ुलाम हो चला। बदलाव का अब जल्दी इंतजाम देखिए। हम बात तो करते हैं,व्य्वस्था बदलने की, बिक जाते हैं,मिलते ही उचित दाम देखिए। जीवन पे यहाँ मौत का विराम देखिए। अजब सा दौर है ये सरे आम देखिए                                  ...

जो दर्द तुम्हारे अंदर हैं

जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं। तुम उलझे हो घर गलियों में,अरमा में मेरे सिकंदर हैं। कुछ न जग से ले जाऊँगा,मरने पर बनूं बबंडर हैं। मेरी मौत से शायद सीखोगे,ये दुनिया एक आडंबर है। जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं। ये दर्द कहो किससे कह दू,मानव सर्कस का बंदर हैं। बंदर की भीड़ में मुखिया था,जो हाथ जोड़ता दुखिया था सत्ता देखो जब से पाया अब वो भी बना लफंडर हैं। जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं। काले ने देश को बेच दिया,वो बन रहे मस्त कलंदर हैं। मेरी सोच में सागर मंथन था,पर पास उसी के मंदर हैं। जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं। मुश्किल लगता हैं बच पाना,हर हाथ में देखो खंजर हैं। रोटी पे रण ठनना तय है,मानव करुणा से बंजर है। मानवता अब मिटने को हैं हर दिशा में ऐसा मंजर हैं। जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं।                                 अनिल कुमार मंडल                         लोको ...

सोये हैं देशवासी

सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए। मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए। अंग्रेज तो कब के गए हैं, इस वतन को छोड़कर, इंडिया को 'अब'भूलकर, भारत पे आना चाहिए। सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए। मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए प्रपंची जब तक गोरे हैं, ये मुल्क कब आजाद हैं, परतंत्रता का शोर हो, आवाज आनी चाहिए। जो ज्ञात हो परतंत्रता हैं, राहे आजादी ढूंढेंगे, बाहें फरक उठे सभी, संचार लहू में चाहिए। सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए। मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए नेताओं की संधी से,ये मूल्क तो नीलाम हैं।, संधी वो सारे तोड़ कर, संग्राम होनी चाहिए। कौन अपना हैं हितेषी, कौन अपना वैरी हैं, इतने दिनों में हमको तो, अंदाज होनी चाहिए। सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए। मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए।                                       अनिल कुमार मंडल                                    रेल...

मेरी चाँदनी

 मेरी चाँदनी रूठी मुझसे, जाने क्या हैं दोष मेरा। तन,मन सब हैं उसपे अर्पण,केवल वो धनकोष मेरा। हम भी उनसे खफा हुए जो,कौन हैं उसे मनायेगा। प्रियतम संग  में बीते जो पल हमको वहीँ रुलाएगा। देखो प्रीत की हार न होवे,जीत न जाये रोष मेरा। अहंकार जो हैं पुरूष में न टूटने न झुकने की। प्रीत माँगता यहाँ समर्पण,थोड़ा-थोड़ा झुकने की। थोड़ा-थोड़ा झुके जो दोनों,पा जाये परितोष मेरा। चंद्रग्रहण जीवन का हटता,चित में हो संतोष मेरा। घिरे न गम के काले बादल,क्षणिक जो होवे रोष मेरा। मेरी चाँदनी रूठा न कर,कह दे मुझसे दोष मेरा।       अनिल कुमार मंडल  लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

नेताओं ने देश बेच दी

कोरोना का काल चल रहा,हम भी तो कुछ काम करे। नेताओं ने देश बेच दी,क्यों उनको गुमनाम करें। एक नही हर पार्टी शामिल, बने हैं साझे सौदागर। कुछ के अंदर शर्म, हया थी, कुछ के जुमले की चादर। भांड मीडिया लिपटी हुई हैं, कुकर्मी के साथ में, भारत को सब ने मिल बेचा, बहुराष्ट्रीय के हाथ में। राजगुरु,सुखदेव,भगत जी, पुनर्जन्म ले आ जाओ, अबकी साथ रहेगा अपना, इंकलाब दुहरा जाओ। जितनी जल्दी हो सकता हैं,, चलो शुरू संग्राम करें, कोरोना का काल चल रहा, हम भी तो कुछ काम करे।           अनिल कुमार मंडल    लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद                      मधुमास           *********** कोयल की कु कु ने गाया, देखो आया हैं मधुमास। आम की खट्टी अमिया बोली, देखो आया हैं मधुमास। इस मौसम का नशा था ऐसा, खुल कर के लेते थे सांस। लेकिन अब हालात अलग हैं, धन देकर के लेते सांस।                                  अनिल कुमार मंडल     ...

मुलाकात

महीनों भर हम सहे जुदाई, कर ले अब मुलाकात प्रिये। आओ बैठो पास हमारे, कर ले प्रीत की बात प्रिये मेरे मन की दुविधाओं को, पढ़ने का कयास करो, वक्त की लगी हैं भागा दौड़ी, दिन में कर ले रात प्रिये। अपनी गुप्त व्याथो का, कहो मैं कैसे इज़हार करू, बिगड़े तन,मन पे तुम देखो, बिगड़ रहे हालात प्रिये मैं सरकारी नौकर हूँ, इस बात की तुमको खबर तो हैं, ना दिन अपनी,ना ही अपनी चाँदनी वाली रात प्रिये। शर्मो, हया के चक्कर में, कितने ही सावन लाँघ गए, बची उम्र में पढ़ा करो,तुम बस मेरे भी जज्बात प्रिये। जिस्म जान से आन मिलो,फिर ठंडे हो हालात प्रिये। प्रेम ना माने, गोरा, काला, ना ही धरम न जात प्रिये, हम तुम दोनों आज करेंगे, नूतन एक शुरुआत प्रिये। आओ कर ले याद प्रभु को, दी जिसने सौगात प्रिये।                 अनिल कुमार मंडल         लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

रे मानुष

  रे मानुष तुम अपने अंदर, ईश्वर को तो देख जरा, क्यों तु जग में आया हैं,कुछ सोच के कर ले नेक जरा।  सब जीवों में सब प्राणी में अब्बल तेरी कर काया,    फिर भी तेरे रोम-रोम में बस गई हैं नश्वर माया।  जिसको अपना समझ रहा हैं, सच में वही लुटेरा हैं।   जीवन आनी, जानी छाया, बस साँसों का घेरा हैं। क्रोध, लोभ जो पथ में बाधा, उसको बाहर फेंक जरा,   रे मानुष तु अपने अंदर, ईश्वर को तो देख जरा। नेक कर्म की पोटली ले कर, चल बैतरणी पार करें,  खुद मुरलीधर लेने आये, धाम तेरे सब होंगे परे।   ऐसा कर हम अज्ञानी को,क्यों न दे संदेश जरा, हम ईश्वर की प्रियतम रचना, उनको दे संकेत जरा।                       अनिल कुमार मंडल                लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

कैसा-कैसा वक्त था बीता

कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको अब वो याद नही। कुछ भी खा लू,कुछ भी पी लू,लगता हैं वो स्वाद नहीं। पंचतत्व को मैला करके,कैसे हम चिरकाल जीये। इसपे भी कुछ चिंतन कर ले,दिल्ली हो बगदाद नही। कैसा-कैसा वक्त था पहले,हमको सब हैं याद नही। जैसा अन्न हो वैसा ही मन,शास्त्र हमारा कहता हैं। जीवों की जब हत्या होती,सुनते क्यों फरियाद नही। कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको सब हैं याद नही। धुंधली-धुंधली सी तस्वीरें,अब भी जहन में बांकी हैं। चिड़िया-चुनमुन,मानव तक,अब रही यहाँ आजाद नही। कैसा-कैसा वक्त था पहले,हमको सब हैं याद नही। मान, मनुहर, प्रणय कलह लोगों में खूब लगाव था। ना मोबाइल,ना गोदी मीडिया,मनु के मन में गाद नहीं कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको सब हैं याद नही। एक ही लक्ष्य हुआ करता था,ईश्वर को पा जाने की, क्षमा, दया, नेकी सब करते,कोई था नाशाद नहीं। कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको सब हैं याद नही।                अनिल कुमार मंडल         लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

सच्चा नेता

सच्चा नेता रहा न कोई, सब के मन में त्रास हैं। तथाकथित नेता भी बदले,जनता यहाँ उदास हैं। एक दिन नेता से कह दी,देश धरम की सोचो तुम, नेता जी फटकार के बोले,करते क्या बकवास हैं। हमनें कैसे कुर्सी पाई,जरा नहीं एहसास  हैं। हाथ भी जोड़े,विनती भी की,पाया ये मधुमास हैं। उचित वक्त तो अब आया हैं,जनता को बहकाने की, हमनें जितने किये थे वादे,जुमला कह जुठलाने की। देश धरम की बात न करना, हम मानव कुछ खास हैं। संविधान का चीरहरण कर,करते हम अट्टहास हैं। हमनें देश की डूबो दी लुटिया,फिर भी हमसे आश हैं। जनता भी मुझसे हैं राजी, वो भी जिंदा लाश हैं।      जो जन बदले हम भी बदले, हमको भी विश्वास हैं।                                   अनिल कुमार मंडल                             लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

चीरहरण

हर दिन यहाँ पे सौदा होता, भारत के स्वाभिमान की। किसी को चिंता कहाँ रही अब, भारत देश महान की। संविधान का चीरहरण कर, कहते जय श्री राम की। जय हो मईया जानकी, जय बोलो श्री राम की। नेता हो या अधिकारी हो, शोषक सभी गैहान की। जुमले से जनता बहकाते, कीमत नही जुबान की। अंग्रेजी में सौदा करते, भारत के स्वाभिमान की। जय हो मईया जानकी, जय बोलो श्री राम की। चलो युवाओं चुप्पी तोड़ो,मुल्क न बने मसान की। आदिल भी खामोश पड़े हैं,विजय न हो शैतान की। पुनः गुलामी घर कर जाए, हार हो मुल्क महान की। जय हो मईया जानकी, जय बोलो श्री राम की। आओ हम सब चिंतन कर ले,निर्धन के अहजान की। आने वाली पीढ़ी न समझे, बुजदिल हिंदुस्तान की। मेरे कारण बच्चों को भी, घुट मिले अपमान की। जय हो मईया जानकी, जय बोलो श्री राम की। संविधान का चीरहरण कर, कहते जय श्री राम की। जय हो मईया जानकी, जय बोलो श्री राम की।                              अनिल कुमार मंडल                        लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद     ...

राजनीति में मचा बबंडर

 राजनीति में मचा बबंडर,कोई देश संभालो जी, रावण देखो राम पे भारी,विश्वामित्र बुला लो जी। राजनीति अब बना खिलौना,धनवानों,बईमानों का। कोई नेक,शरीफ सा बन्दा,इसको गले लगा लो जी। जाति,धर्म की राजनीति से,जनता यहाँ बेज़ार हैं। एक कोई आदिल आकर के,मुखड़ा सभी खिला दो जी। झूठ,फरेब और भ्रष्टाचार का,चारों ओर नज़ारा हैं। ज्ञान का दीप जलाकर कोई,हिन्द की शान बचा लो जी। द्वापद के गोविंद थे रक्षक, सतयुग के थे राम जी। कलयुग में कोई तो आकर, के कर जाए संग्राम जी। युवा देश का मूर्छित हो गया,संजीवनी पीला दो जी। देश,धर्म से विमुख हुए जो,उनको भी समझा दो जी भारत को भारत रहने दो, इंडिया चलो हटा दो जी। एक मेरी सब से हैं विनती, गुरुकुल शिक्षा ला दो जी। राजनीति में मचा बबंडर,कोई देश संभालो जी। रावण देखो राम पे भारी,विश्वामित्र बुला लो जी।                            अनिल कुमार मंडल                      

मेरे सांसो की डोरी

 मेरे सांसों की डोरी पर  उसने भांजी है तलवार। बिलगेट्स या रॉथचाइल्ड हो,  कोरोना उसका हथियार। डर का एक माहौल बनाकर, करना चाहे वो तो व्यापार। मानवता का मोल न जाने, चाहे कितनो हो संहार। मंत्री,संत्री,जनता, वंता, वक़्त के हाथों हैं लाचार। वैश्विक क्रांति करनी होगी, फिर पाये मुक्ति का द्वार। मंत्री जी कर रहे गुलामी, बढ़ रहा उनका अत्याचार। हम तो गुलामों के गुलाम हैं, करना होगा ये स्वीकार। तभी तो ढूंढें राहे आजादी, वैश्विक ताकत की हो हार। मेरे सांसो की डोरी पर, जिसने भांजी हैं तलवार।            अनिल कुमार मंडल       लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

चांद की ओर

चलो चाँद की ओर सनम,पलकों पर तुझे बिठायेंगे। पग में जो कांटा चुभ जाए,राह में नैन बिछायेंगे। दर्द तुझे छूने न पाये,बढ़कर गले लगायेंग। चलो चाँद की ओर सनम,पलकों पर तुझे बिठाएंगे तेरे नाम का बना घरौंदा,ढाई अक्षर गा लेंगे। एक दूजे में खोये ऐसे,सारे जहाँ को भुला देंगे। चलो चाँद की ओर सनमपलकों पे तुझे बिठायेंगे। फूलों की हो सेज जहाँ,कांटो को चलो दगा देंगे। हम-तुम दोनों तन्हाई ,आगे कोई मिले भगा देंगे चलो चांद की ओर सनम,पलकों पर तुझे बिठायेंगे।                      अनिल कुमार मंडल               रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

शहीद का रक्त

मैं शहीद का रक्त हूँ साथी,मुझसे सभी को प्यार। ना मैं हिन्दू ना मैं मुस्लिम, धर्म की सीमा पार। जाति की दीवारें तोड़ के,बना मैं पहरेदार । मैं शहीद का रक्त हूँ साथी,मुझसे सभी को प्यार। मैं भारत की मिट्टी में हूँ,सुन लो मेरी पुकार। मंत्री, कन्त्री या जनता हो,सब पे मेरा उधार। मैं शहीद का रक्त हूँ साथी,मुझसे सभी को प्यार। चौराहे पर मूर्ति बनाकर,मत करना उपकार। बच्चों मेरी गाथा सुन के ,मत होना बेज़ार। मैं शहीद का रक्त हूँ साथी,मुझसे सभी को प्यार। मातृभूमि की रक्षा में,दुश्मन का करो शिकार। मेरे रक्त जो रहे पिपासु,का कर दो उद्धार। मेरी गाथा हौसला दे तुझे,करू मैं जयजयकार। मैं शहीद का रक्त हूँ साथी मुझसे सभी को प्यार।             अनिल कुमार मंडल           रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

आदमी

बीमारी के भय से इतना डर गया हैं आदमी। मौत से पहले ही देखो मर गया हैं आदमी। विज्ञान की छाया में क्या-क्या कर गया हैं आदमी। अर्थ की दुनिया बना सिहर गया हैं आदमी। कसमें खाता, मन बनाता, ठान अक्सर घर से जाता, पर जहाँ की शोर सुन बिगड़ गया हैं आदमी। तन का सौदा,मन का सौदा कर रहा जीवन का सौदा, पेट के खातिर यहाँ सब कर रहा हैं आदमी। दुनिया की रंगीनियों में, यू भटक कर खो गया। नैतिकता का मोल भी अब कर गया हैं आदमी। धन कमाना रह गया, अब मोक्ष की न फिक्र है, चरित्र और व्यवहार से भी मर गया हैं आदमी। पेट में जब आग हो,तो पाप क्या और पुण्य क्या, भैरव का भोग पी रहा ,सुधर गया है आदमी। सत्य और नेकी करूँगा, ठानता हैं आदमी। पर पाप की गठरी सजाकर भर गया हैं आदमी। मौत एक अटल सत्य हैं, जनता हैं आदमी। जीता ऐसे हैं की ये अमर हुआ है आदमी। बीमारी के भय से इतना डर गया हैं आदमी। मौत से पहले ही देखो मर गया हैं आदमी।                    अनिल कुमार मंडल                 रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

एक दिल

जब मैं तुमको व्याह के लाया,सपने अपने एक हुए। एक दिल तेरा,एक दिल मेरा, अब दोंनो मिल एक हुए। देखो मैंने छोड़ दी मदिरा, आदमी हम भी नेक हुए। पर तेरे जो नैन नशीले, देखें घुटने टेक हुए। एक दिल तेरा,एक दिल मेरा, अब दोंनो मिल एक हुए। बाहों में भर लू मैं तुझको, दिल से एक संकेत हुए। न दिन दिखता,ना ही रातें,हम तो तुमको भेंट हुए। एक दिल तेरा,एक दिल मेरा, अब दोंनो मिल एक हुए। जब मैं तुमको व्याह के लाया, सपने अपने एक हुए। गई जवानी,आया बुढापा,वक़्त के हाथ की रेत हुए। बच्चों ने धन,दौलत ले ली, हम काले वो स्वेत हुए। हमनें जो सपने थे संजोए,सपने भी अनिकेत हुए। एक दिल तेरा,एक दिल मेरा, अब दोंनो मिल एक हुए।                             अनिल कुमार मंडल                 

झूठ से बनती हैं सरकार

झूठी ये गणतंत्र हैं साथी, झूठ से बनती हैं सरकार। देश की जनता बेघर भूखी, उसपे बढ़ता अत्त्याचार। सत्ता का बस लेन-देन था, लंदन से ये चला विचार। कानून सभी हो लंदन वाली, चच्चा ने कर ली स्वीकार। झूठी ये गणतंत्र हैं साथी, झूठ से बनती हैं सरकार। राजनीति में ग्रहण लगा हैं, बन गया देखो ये तो व्यापार। तन,मन,धन, ईमान भी बिकता, देखो ऐसा ये बाजार। आओ मिलकर मंथन कर ले, बना ले अपना एक विचार। चालक हमनें बहुत हैं बदले, गाड़ी बदले करें सुधार। चालक लाल बहादुर जैसा, स्वाभिमानी हो अपनी कार। कानून न कोई अंग्रेजी हो, नेता जहाँ न हो गद्दार। विश्व बैंक का कर्ज उतारे, चाहे करनी हो तकरार। स्विश बैंक के देशी धन से, होगा भारत का उद्धार। सचमुच अपना देश सजेगा, अपनी गूंजेगी जयकार।            अनिल कुमार मंडल          रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद