झूठ से बनती हैं सरकार
झूठी ये गणतंत्र हैं साथी,
झूठ से बनती हैं सरकार।
देश की जनता बेघर भूखी,
उसपे बढ़ता अत्त्याचार।
सत्ता का बस लेन-देन था,
लंदन से ये चला विचार।
कानून सभी हो लंदन वाली,
चच्चा ने कर ली स्वीकार।
झूठी ये गणतंत्र हैं साथी,
झूठ से बनती हैं सरकार।
राजनीति में ग्रहण लगा हैं,
बन गया देखो ये तो व्यापार।
तन,मन,धन, ईमान भी बिकता,
देखो ऐसा ये बाजार।
आओ मिलकर मंथन कर ले,
बना ले अपना एक विचार।
चालक हमनें बहुत हैं बदले,
गाड़ी बदले करें सुधार।
चालक लाल बहादुर जैसा,
स्वाभिमानी हो अपनी कार।
कानून न कोई अंग्रेजी हो,
नेता जहाँ न हो गद्दार।
विश्व बैंक का कर्ज उतारे,
चाहे करनी हो तकरार।
स्विश बैंक के देशी धन से,
होगा भारत का उद्धार।
सचमुच अपना देश सजेगा,
अपनी गूंजेगी जयकार।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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