कैसा-कैसा वक्त था बीता

कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको अब वो याद नही।
कुछ भी खा लू,कुछ भी पी लू,लगता हैं वो स्वाद नहीं।
पंचतत्व को मैला करके,कैसे हम चिरकाल जीये।
इसपे भी कुछ चिंतन कर ले,दिल्ली हो बगदाद नही।
कैसा-कैसा वक्त था पहले,हमको सब हैं याद नही।
जैसा अन्न हो वैसा ही मन,शास्त्र हमारा कहता हैं।
जीवों की जब हत्या होती,सुनते क्यों फरियाद नही।
कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको सब हैं याद नही।
धुंधली-धुंधली सी तस्वीरें,अब भी जहन में बांकी हैं।
चिड़िया-चुनमुन,मानव तक,अब रही यहाँ आजाद नही।
कैसा-कैसा वक्त था पहले,हमको सब हैं याद नही।
मान, मनुहर, प्रणय कलह लोगों में खूब लगाव था।
ना मोबाइल,ना गोदी मीडिया,मनु के मन में गाद नहीं
कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको सब हैं याद नही।
एक ही लक्ष्य हुआ करता था,ईश्वर को पा जाने की,
क्षमा, दया, नेकी सब करते,कोई था नाशाद नहीं।
कैसा-कैसा वक्त था बीता,हमको सब हैं याद नही।

               अनिल कुमार मंडल
        लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

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