मेरी चाँदनी

 मेरी चाँदनी रूठी मुझसे, जाने क्या हैं दोष मेरा।
तन,मन सब हैं उसपे अर्पण,केवल वो धनकोष मेरा।
हम भी उनसे खफा हुए जो,कौन हैं उसे मनायेगा।
प्रियतम संग  में बीते जो पल हमको वहीँ रुलाएगा।
देखो प्रीत की हार न होवे,जीत न जाये रोष मेरा।
अहंकार जो हैं पुरूष में न टूटने न झुकने की।
प्रीत माँगता यहाँ समर्पण,थोड़ा-थोड़ा झुकने की।
थोड़ा-थोड़ा झुके जो दोनों,पा जाये परितोष मेरा।
चंद्रग्रहण जीवन का हटता,चित में हो संतोष मेरा।
घिरे न गम के काले बादल,क्षणिक जो होवे रोष मेरा।
मेरी चाँदनी रूठा न कर,कह दे मुझसे दोष मेरा।

      अनिल कुमार मंडल
 लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद


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