रे मानुष
रे मानुष तुम अपने अंदर, ईश्वर को तो देख जरा,
क्यों तु जग में आया हैं,कुछ सोच के कर ले नेक जरा।
सब जीवों में सब प्राणी में अब्बल तेरी कर काया,
फिर भी तेरे रोम-रोम में बस गई हैं नश्वर माया।
जिसको अपना समझ रहा हैं, सच में वही लुटेरा हैं।
जीवन आनी, जानी छाया, बस साँसों का घेरा हैं।
क्रोध, लोभ जो पथ में बाधा, उसको बाहर फेंक जरा,
रे मानुष तु अपने अंदर, ईश्वर को तो देख जरा।
नेक कर्म की पोटली ले कर, चल बैतरणी पार करें,
खुद मुरलीधर लेने आये, धाम तेरे सब होंगे परे।
ऐसा कर हम अज्ञानी को,क्यों न दे संदेश जरा,
हम ईश्वर की प्रियतम रचना, उनको दे संकेत जरा।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
Comments
Post a Comment