सोये हैं देशवासी
सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए।
मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए।
अंग्रेज तो कब के गए हैं, इस वतन को छोड़कर,
इंडिया को 'अब'भूलकर, भारत पे आना चाहिए।
सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए।
मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए
प्रपंची जब तक गोरे हैं, ये मुल्क कब आजाद हैं,
परतंत्रता का शोर हो, आवाज आनी चाहिए।
जो ज्ञात हो परतंत्रता हैं, राहे आजादी ढूंढेंगे,
बाहें फरक उठे सभी, संचार लहू में चाहिए।
सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए।
मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए
नेताओं की संधी से,ये मूल्क तो नीलाम हैं।,
संधी वो सारे तोड़ कर, संग्राम होनी चाहिए।
कौन अपना हैं हितेषी, कौन अपना वैरी हैं,
इतने दिनों में हमको तो, अंदाज होनी चाहिए।
सोये हैं देशवासी,अब,उनको जगाना चाहिए।
मन की गुलामी छोड़कर, बाहर भी आना चाहिए।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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