मौत का विराम
जीवन पे यहाँ मौत का विराम देखिए,
एक दौर चल रहा हैं सरे आम देखिए।
मुर्दे भी ढूंढते हैं जमी दफन के लिए,
हुजूम से सुना पड़ा समसान देखिए।
शहर बधिर हो गया और मूक बढ़ गए।
रुका नहीं जम्हूरियत का जाम देखिए।
जम्हूरियत लोग जब शरीफ थे यहाँ।
जीवन से अपने देते थे पैगाम देखिए।
बसन से ज्यादा आज जब कफन बिके यहाँ,
सब दूर से कहते हैं राम-राम देखिए।
माँ बाप दफन हो रहे गंगा की रेत मैं,
कैसे मिलेगा उनको मोक्ष धाम देखिए।
समय के साथ देखिए सबकुछ बदल गया।
नेता हुआ हैं सत्ता का गुलाम देखिए।
जनता को दे दिया हैं इसने भूख, बेबसी,
संधी से किया देश ये नीलाम देखिए।
हर आम आदमी यहाँ पे खास हो गया,
सब अर्थ के हाथों हैं, लगाम देखिए।
युवा भी सो गया हैं,फटी जीन्स पहन के,
कैसे पहल हो अब,कोई संग्राम देखिए।
तन मन से देश गोरों का ग़ुलाम हो चला।
बदलाव का अब जल्दी इंतजाम देखिए।
हम बात तो करते हैं,व्य्वस्था बदलने की,
बिक जाते हैं,मिलते ही उचित दाम देखिए।
जीवन पे यहाँ मौत का विराम देखिए।
अजब सा दौर है ये सरे आम देखिए
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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