जो दर्द तुम्हारे अंदर हैं

जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं।
तुम उलझे हो घर गलियों में,अरमा में मेरे सिकंदर हैं।
कुछ न जग से ले जाऊँगा,मरने पर बनूं बबंडर हैं।
मेरी मौत से शायद सीखोगे,ये दुनिया एक आडंबर है।
जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं।
ये दर्द कहो किससे कह दू,मानव सर्कस का बंदर हैं।
बंदर की भीड़ में मुखिया था,जो हाथ जोड़ता दुखिया था
सत्ता देखो जब से पाया अब वो भी बना लफंडर हैं।
जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं।
काले ने देश को बेच दिया,वो बन रहे मस्त कलंदर हैं।
मेरी सोच में सागर मंथन था,पर पास उसी के मंदर हैं।
जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं।
मुश्किल लगता हैं बच पाना,हर हाथ में देखो खंजर हैं।
रोटी पे रण ठनना तय है,मानव करुणा से बंजर है।
मानवता अब मिटने को हैं हर दिशा में ऐसा मंजर हैं।
जो दर्द तुम्हारे अन्दर हैं,वो मेरे पास समंदर हैं।

                                अनिल कुमार मंडल
                        लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद


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