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Showing posts from June, 2021

आईना सच बोलता हैं

जुवां नहीं इसकी मगर ये आईना सच बोलता हैं जो हैं जैसा जीव देखो हू-ब-हू ये तोलता हैं। सामने आये परिंदा या कपि कोई रूप ले, या कोई निर्धन हो आया,या जगत का भूप ले। जो हो जैसा उसको वैसा रूप ये दिखलाएगी। इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो सच से न डर पायेगी। आईना निर्जीव हैं ये मुख कभी न खोलता हैं। बेजुवां में हैं जुवां जो झूठ कुछ न बोलता है। जो हो जैसा उसको ये तो हू-ब-हू ही तोलता हैं, जुवां नहीं इसकी मगर ये आईना सच बोलता हैं।          अनिल कुमार मंडल      रेल चालक /ग़ाज़ियाबाद

प्रणय कलह का खेल

चलो सजन हम तुम करते हैं,ऐसी एक शुरुआत जी, प्रणय कलह का खेल बनाकर खेलेंगे दिन-रात जी। एक दूजे को छुए बिना, नैनों से होगी बात जी, जिसकी पलकें झुकेगी पहले,उसकी होगी मात जी। चाहे कोई बने विजेता,करूंगी मैं शुरूआत जी, तुम मुझको न छेड़ोगे कभी,मैं छेड़ूँ दिन-रात जी। चलो सजन हम तुम करते हैं,ऐसी एक शुरुआत जी, प्रणय कलह का खेल बनाकर खेलेंगे दिन-रात जी। पतझड़ का मौसम हो या हो,भादों की बरसात जी,  खेल हमारा चले निरंतर, समझो तुम हालात जी प्रीत भरी इस खेल में देखो,पाएंगे सौगात जी, तेरा-मेरा रहे न कोई,अपनी ये जज़्बात जी। चलो सजन हम तुम करते हैं,ऐसी एक शुरुआत जी, प्रणय कलह का खेल बनाकर खेलेंगे दिन-रात जी।                                      अनिल कुमार मंडल                                  रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

ठगी गई हैं देश की जनता

ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी। ठगी गई हैं गंगा मैया,ठगे गए ईमाम जी फिर भी जनता नही जागती,मन से हुए गुलाम जी। तथाकथित नेता जी देखो,कर रहे हैं विश्राम जी। ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी। एक-एक करके देश बिक रहा,लग रहा सबका दाम जी। जंगल बिक गए,पर्वत बिक गए,बिक गए देखो धाम जी। नौकरी गूलर फूल हुए,शिक्षा पे लगा विराम जी। ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी। निर्धन,भूखे बढ़ते देश में, इसका नूतन नाम जी। इसी को कहते हैं विकास, रोटी पे हो संग्राम जी। मीडिया भी दासी इनकी हैं जपते सुबहों शाम जी। ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी। मन की गुलामी से निकले तो,थोपेंगे इलजाम जी। वीरों की ऐतहासिक धरती,हो रही हैं नीलम जी। वैश्विक बंधन तोड़े भारत,कर्ज का छोड़े जाम जी। अब न कोई चाणक्य आकर, करेंगे कोई काम जी। खुद ही हमको दृढ़ निश्चय ले,करना हैं कुछ काम जी। ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी। ठगी गई हैं गंगा मैया,ठगे गए ईमाम जी।                         अनिल कुमार मंडल             ...

संभलो हिन्द के वासी

 हर एक चौक चौराहे पर,  ऑक्सीजन बिकने वाला हैं। संभलो हिन्द के बासी संभलो,  सब कुछ गड़बड़ झाला हैं। विश्व के सत्ता धारी ने, भारत में नेता पाला हैं। कोई पार्टी हो सत्ता में, कुछ नहीं करने वाला हैं। संभलो हिन्द के बासी संभलो,  सब कुछ गड़बड़ झाला हैं। कोरोना के नाम पे देखों, देश ये लूटने वाला हैं। जो इस साजिश को समझेगा, बस वहीं बचने वाला हैं। हर एक चौक, चौराहे पर, ऑक्सीजन बिकने वाला है। संभलो हिन्द के बासी संभलो,  सब कुछ गड़बड़ झाला हैं। गलत टेस्ट हैं,झूठा वैक्सीन, मौत ये देने वाला हैं। चेहरे पे पर्दे लगवाकर, रोग ये देने वाला हैं। संभलो हिन्द के बासी संभलो,  सब कुछ गड़बड़ झाला हैं। लोगों अब सड़कों पे आओ, फिर कुछ होने वाला हैं। मीडिया भी सब बिके हुए हैं, सब के मुख पर ताला हैं। संभलो हिन्द के बासी संभलो, सब कुछ गड़बड़ झाला हैं। हर एक चौक चौराहे पर, ऑक्सीजन बिकने वाला हैं।         अनिल कुमार मंडल       रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

कोरोना का शोर

 बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर। तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर। मास्क लगाओ,दो गज दूरी,कहते हो गुजरे ये दौर। स्कूल बंद,दुकानें बंद हैं,मयखाने पे क्यो हैं शोर। तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर। बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर। जीव,जन्तु सब भूखे प्यासे,जंगल में न नाचे मोर। जिनके घर में रोज़ी-रोटी,वो खाते अखरोट को फोड़। निर्धन सब रोटी को तरसे,भूख ने दिया उसे झकझोर। तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर। बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर। उनकी भी तो सोंचो साहब,जिनके सपने थे चितचोर। तुम हो बाबू एoसीoवाले,हम थे मेहनतकश जी तोड़। घर बैठे भी लगी बीमारी,कैसा हैं जीवन में मोड़। तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर। बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर। एक बीमारी से बचने में,बहुरोगों से तन कमजोर। विनती आपसे हमसब करते,बंद करा दो अब ये शोर। मेहनतकश कोई घर न बैठे,सुनकर कोरोना का शोर। बंद न हो कही आना जाना,खुशहाली फैले चहु ओर।2                             ...

तुम्हारी चाहत

 देखो कैसा हाल हुआ हैं, सनम तुम्हारी चाहत में। डरा-डरा सा मैं रहता हूँ, दिन बीते घबराहट में। जद्दोजहद कर तुझको पाया, माँ,बापू से जा टकराया। उल्फत में भी हुई लड़ाई, लड़ बैठे दो सगे से भाई। तेरा-मेरा जुड़ा हैं रिश्ता,  रिश्तों की गरमाहट में। देखो कैसा हाल हुआ हैं, सनम तुम्हारी चाहत में। डरा-डरा सा मैं रहता हूँ, दिन बीते घबराहट में। देख सनम मुझे सजा न देना, अपने इश्क को क़ज़ा न देना। सोच-सोच कर डर जाते हैं, हिज्र की हल्की आहट में। डरा-डरा सा में रहता हूँ, दिन बीते घबराहट में। देखो कैसा हाल हुआ हैं, सनम तुम्हारी चाहत में। डरा-डरा सा मैं रहता हूँ, दिन बीते घबराहट में।                                 अनिल कुमार मंडल                                      रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

तेरे दुःख हर लेंगे राम

निर्धन का दुःख हरने वाले,तेरे दुःख हर लेंगे राम। राम लल्ला है सब दुःख हर्ता,पहुँचाये बैकुंठ के धाम। सत्य सनातन धर्म हैं कहता,कर बंदे नेकी का काम। निर्धन का दुःख हरने वाले,तेरे दुःख हर लेंगे राम। ये मानव तन पाया हमनें, सब जीवों में ये हैं ललाम। निर्धन का दुःख हरने वाले,तेरे दुःख हर लेंगे राम। प्यासे को पानी पिलवाओ,भूखे को रोटी का पान। सद्गुण हो व्यवहार हमारा,सब का कर ले हम सम्मान। निर्धन का दुःख हरने वाले,तेरे दुःख हर लेंगे राम। छल प्रपंच से दूर रहे हम,ईश्वर का भी कर ले ध्यान। भटके हैं जो राही बाट से,दे प्रभु थोड़ा उनको ज्ञान। निर्धन का दुःख हरने वाले,तेरे दुःख हर लेंगे राम।                                    अनिल कुमार मंडल                                 रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

मायके की वादी

चलो सजन मुझे ले के चलो तुम,  मायके की उस वादी में। जहाँ पे मेरे बाबा बसते , धोती कुर्ता खादी में। चलो सजन मुझे ले के चलो तुम,  मायके की उस वादी में। वर्षो पहले जहां लड़े,  गुड्डे की झूठी शादी में। पल में कुट्टा,पल में अब्बा, बचपन वाली आदी में। नर नारी में भेद नहीं थी,  बच्चो की फुलवारी में। भैया के संग दौड़ लगाते, जेठ की जलती आंधी में। चलो सजन मुझे ले के चलो तुम,  मायके की उस वादी में। गांव का बरगद उसपे झूला, दादी का नुक्सा व्याधि में। ना मोबाइल की चकाचौंध,  खुशियां थी कम आबादी में। अब धन हैं और बंगला गाड़ी,  चैन नहीं आजादी में। रिश्ते झूठे,अर्थ की दुनिया,  प्रीत नही इस वादी में। चलो सजन मुझे ले के चलो तुम,  मायके की उस वादी में। प्रेम पाश में गांव बंधा था,  दिख जाता हर शादी में। मान, मनुहार प्रेम कलह बीच,  कटेगा वक्त समाधि में। चलो सजन एक बार घूमा दो,  मायके की उस वादी में।                  अनिल कुमार मंडल                      ...

नक़्शे कदम

जहाँ तेरे नक़्शे कदम देखते हैं, उसी ठौर तुमको सनम देखते हैं। खफा तुमसे हैं,पर जुदा तो नहीं हैं। न कहना तू मुझको की कम देखते हैं। सितारों की बस्ती से दिल में समाई, एहसान तेरा सनम देखते हैं। मेरी हर तमन्ना को पुरा किया हैं, इसमें भी तेरा रहम देखते हैं। तुम्हीं ने दिया गम, तुम्हीं ने ख़ुशी दी, मोहब्बत भरा हर सितम देखते हैं। जो सातों जन्म का ये बंधन हो अपना, कयामत के दिन को भी कम देखते हैं। रुसवा न करना,मेरी जान मुझको,  तेरे दिल में सौ-सौ भ्रम देखते हैं। जहाँ तेरे नक़्शे कदम देखते हैं। उसी ठौर तुमको सनम देखते हैं।                    अनिल कुमार मंडल                 रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

जीवन क्या हैं

 हमनें तो बस इतना जाना, जीवन क्या हैं एक फसाना। सबको पढ़ने से बेहतर हैं, ख़ुद अपना इतिहास बनाना। हमनें तो बस इतना जाना, जीवन क्या हैं एक फसाना। प्यार हमारा,हमको मिले तो, पा जाये हम एक खजाना। सबको पढ़ने से बेहतर हैं, ख़ुद अपना इतिहास बनाना। तुम रूठी तो,रब हैं रूठा, यार मना लू दे नज़राना। हमनें तो बस इतना जाना, जीवन क्या हैं एक फसाना। फिर चाहे तो,मौत आ जाए, बिन तेरे हैं खाख जमाना। सबको पढ़ने से बेहतर हैं, ख़ुद अपना इतिहास बनाना। सुख दुःख दोनों जीवन रस हैं, एक भाव से पढ़,ले तराना। हमनें तो बस इतना जाना, जीवन क्या हैं एक फसाना। मेरा तो बस काम हैं साथी, सबको सच्ची राह दिखाना। सबको पढ़ने से बेहतर हैं, ख़ुद अपना इतिहास बनाना। हमनें तो बस इतना जाना, जीवन क्या हैं एक फसाना।          अनिल कुमार मंडल      रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

घायल पंक्षी

 मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा, दूजा कोई मिले जो गोरी, क्यों देखूं मुख तेरा। खुद को समझे छैल-छबीली, हो न सके जो मेरा।  मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा, अभी तो गर्दिश में दिन मेरे, सुख में तेरा डेरा, वक़्त बदलते देर न लगती, आज तेरा कल मेरा। मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा, जाने कैसे मति मरी थी, गया था एक दिन खेड़ा, नैन मिलाकर तुमने गोरी,किया था एक बखेड़ा। मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा, दूजा कोई मिले जो गोरी, क्यों देखूं मुख तेरा। सखियों के संग करी ठिठोली, तुम्हीं ने मुझको छेड़ा, पहल प्रीत की तुमनें की थी, बना मैं आशिक तेरा। मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा, ये जग सारा नश्वर गोरी, क्या तेरा क्या मेरा, फिर क्यों दिल का बना घरौंदा,उसपर पानी फेरा। मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा, दूजा कोई मिले जो गोरी, क्यों देखूं मुख तेरा जीने की ख्वाईश न रही,तुमनें जो दिया अंधेरा, दूजा कोई मिले जो गोरी,होगा नया सबेरा।2                            ...