घायल पंक्षी

 मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा,
दूजा कोई मिले जो गोरी, क्यों देखूं मुख तेरा।
खुद को समझे छैल-छबीली, हो न सके जो मेरा।
 मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा,
अभी तो गर्दिश में दिन मेरे, सुख में तेरा डेरा,
वक़्त बदलते देर न लगती, आज तेरा कल मेरा।
मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा,
जाने कैसे मति मरी थी, गया था एक दिन खेड़ा,
नैन मिलाकर तुमने गोरी,किया था एक बखेड़ा।
मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा,
दूजा कोई मिले जो गोरी, क्यों देखूं मुख तेरा।
सखियों के संग करी ठिठोली, तुम्हीं ने मुझको छेड़ा,
पहल प्रीत की तुमनें की थी, बना मैं आशिक तेरा।
मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा,
ये जग सारा नश्वर गोरी, क्या तेरा क्या मेरा,
फिर क्यों दिल का बना घरौंदा,उसपर पानी फेरा।
मैं तेरे प्रीत का घायल पंक्षी, ढूंढू एक बसेरा,
दूजा कोई मिले जो गोरी, क्यों देखूं मुख तेरा
जीने की ख्वाईश न रही,तुमनें जो दिया अंधेरा,
दूजा कोई मिले जो गोरी,होगा नया सबेरा।2
                           अनिल कुमार मंडल
                          रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

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