तुम्हारी चाहत
देखो कैसा हाल हुआ हैं,
सनम तुम्हारी चाहत में।
डरा-डरा सा मैं रहता हूँ,
दिन बीते घबराहट में।
जद्दोजहद कर तुझको पाया,
माँ,बापू से जा टकराया।
उल्फत में भी हुई लड़ाई,
लड़ बैठे दो सगे से भाई।
तेरा-मेरा जुड़ा हैं रिश्ता,
रिश्तों की गरमाहट में।
देखो कैसा हाल हुआ हैं,
सनम तुम्हारी चाहत में।
डरा-डरा सा मैं रहता हूँ,
दिन बीते घबराहट में।
देख सनम मुझे सजा न देना,
अपने इश्क को क़ज़ा न देना।
सोच-सोच कर डर जाते हैं,
हिज्र की हल्की आहट में।
डरा-डरा सा में रहता हूँ,
दिन बीते घबराहट में।
देखो कैसा हाल हुआ हैं,
सनम तुम्हारी चाहत में।
डरा-डरा सा मैं रहता हूँ,
दिन बीते घबराहट में।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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