कोरोना का शोर
तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर।
मास्क लगाओ,दो गज दूरी,कहते हो गुजरे ये दौर।
स्कूल बंद,दुकानें बंद हैं,मयखाने पे क्यो हैं शोर।
तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर।
बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर।
जीव,जन्तु सब भूखे प्यासे,जंगल में न नाचे मोर।
जिनके घर में रोज़ी-रोटी,वो खाते अखरोट को फोड़।
निर्धन सब रोटी को तरसे,भूख ने दिया उसे झकझोर।
तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर।
बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर।
उनकी भी तो सोंचो साहब,जिनके सपने थे चितचोर।
तुम हो बाबू एoसीoवाले,हम थे मेहनतकश जी तोड़।
घर बैठे भी लगी बीमारी,कैसा हैं जीवन में मोड़।
तुम भी बैठे अपने घर में,हम भी बैठे अपने ठौर।
बंद करें हम आना जाना,कोरोना का मचा हैं शोर।
एक बीमारी से बचने में,बहुरोगों से तन कमजोर।
विनती आपसे हमसब करते,बंद करा दो अब ये शोर।
मेहनतकश कोई घर न बैठे,सुनकर कोरोना का शोर।
बंद न हो कही आना जाना,खुशहाली फैले चहु ओर।2
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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