आईना सच बोलता हैं
जुवां नहीं इसकी मगर ये आईना सच बोलता हैं
जो हैं जैसा जीव देखो हू-ब-हू ये तोलता हैं।
सामने आये परिंदा या कपि कोई रूप ले,
या कोई निर्धन हो आया,या जगत का भूप ले।
जो हो जैसा उसको वैसा रूप ये दिखलाएगी।
इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो सच से न डर पायेगी।
आईना निर्जीव हैं ये मुख कभी न खोलता हैं।
बेजुवां में हैं जुवां जो झूठ कुछ न बोलता है।
जो हो जैसा उसको ये तो हू-ब-हू ही तोलता हैं,
जुवां नहीं इसकी मगर ये आईना सच बोलता हैं।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक /ग़ाज़ियाबाद
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