ठगी गई हैं देश की जनता
ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी।
ठगी गई हैं गंगा मैया,ठगे गए ईमाम जी
फिर भी जनता नही जागती,मन से हुए गुलाम जी।
तथाकथित नेता जी देखो,कर रहे हैं विश्राम जी।
ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी।
एक-एक करके देश बिक रहा,लग रहा सबका दाम जी।
जंगल बिक गए,पर्वत बिक गए,बिक गए देखो धाम जी।
नौकरी गूलर फूल हुए,शिक्षा पे लगा विराम जी।
ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी।
निर्धन,भूखे बढ़ते देश में, इसका नूतन नाम जी।
इसी को कहते हैं विकास, रोटी पे हो संग्राम जी।
मीडिया भी दासी इनकी हैं जपते सुबहों शाम जी।
ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी।
मन की गुलामी से निकले तो,थोपेंगे इलजाम जी।
वीरों की ऐतहासिक धरती,हो रही हैं नीलम जी।
वैश्विक बंधन तोड़े भारत,कर्ज का छोड़े जाम जी।
अब न कोई चाणक्य आकर, करेंगे कोई काम जी।
खुद ही हमको दृढ़ निश्चय ले,करना हैं कुछ काम जी।
ठगी गई हैं देश की जनता,ठगे गए श्री राम जी।
ठगी गई हैं गंगा मैया,ठगे गए ईमाम जी।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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