प्रणय कलह का खेल
चलो सजन हम तुम करते हैं,ऐसी एक शुरुआत जी,
प्रणय कलह का खेल बनाकर खेलेंगे दिन-रात जी।
एक दूजे को छुए बिना, नैनों से होगी बात जी,
जिसकी पलकें झुकेगी पहले,उसकी होगी मात जी।
चाहे कोई बने विजेता,करूंगी मैं शुरूआत जी,
तुम मुझको न छेड़ोगे कभी,मैं छेड़ूँ दिन-रात जी।
चलो सजन हम तुम करते हैं,ऐसी एक शुरुआत जी,
प्रणय कलह का खेल बनाकर खेलेंगे दिन-रात जी।
पतझड़ का मौसम हो या हो,भादों की बरसात जी,
खेल हमारा चले निरंतर, समझो तुम हालात जी
प्रीत भरी इस खेल में देखो,पाएंगे सौगात जी,
तेरा-मेरा रहे न कोई,अपनी ये जज़्बात जी।
चलो सजन हम तुम करते हैं,ऐसी एक शुरुआत जी,
प्रणय कलह का खेल बनाकर खेलेंगे दिन-रात जी।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
Comments
Post a Comment