बाबुल का घर छोड़ू कैसे
बाबूल का घर छोडू कैसे,मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन पहला निवाला जहा का खाया,जहा से पाया था जीवन जिस माता ने क्षीर पिलाई,हो न उस हीय का भेदन उस बापू का दिल टूटेगा,किये हैं जिसने लाख जतन बाबूल का घर छोडू कैसे , मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन बचपन की गुड्डे की शादी,वो तितली वो ठंडी पवन रेतो पे वो घर बनवाना,जो दिखता था राज भवन भैया संग पतंगे उड़ाना,सखियो का खाना जूठन जिस दहलीज पे बाबा पुकारे,बात-बात पे सुन कंचन बाबूल का घर छोडू कैसे,मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन वो बचपन की सखी-सहेली,सबके अब हो गये लगन दाता का ये क्या विधान हैं,प्रीत होता यहाँ गबन बापू का घर छोड़ सजन में बन गई अब तेरी जोगन इस घर की हैं लाल चुनरिया,तेरे घर का होगा कफन बाबूल का घर छोडू कैसे,मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन ...