Posts

Showing posts from August, 2021

बाबुल का घर छोड़ू कैसे

  बाबूल का घर छोडू कैसे,मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन पहला निवाला जहा का खाया,जहा से पाया था जीवन जिस माता ने क्षीर पिलाई,हो न उस हीय का भेदन उस बापू का दिल टूटेगा,किये हैं जिसने लाख जतन बाबूल का घर छोडू कैसे , मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन बचपन की गुड्डे की शादी,वो तितली वो ठंडी पवन रेतो पे वो घर बनवाना,जो दिखता था राज भवन भैया संग पतंगे उड़ाना,सखियो का खाना जूठन जिस दहलीज पे बाबा पुकारे,बात-बात पे सुन कंचन बाबूल का घर छोडू कैसे,मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन वो बचपन की सखी-सहेली,सबके अब हो गये लगन दाता का ये क्या विधान हैं,प्रीत होता यहाँ गबन बापू का घर छोड़ सजन में बन गई अब तेरी जोगन इस घर की हैं लाल चुनरिया,तेरे घर का होगा कफन बाबूल का घर छोडू कैसे,मुझसे कह दो मेरे सजन जिस मिट्टी मे बचपन बीता,जहा बनी थी मै दुल्हन                            ...

बुलेट ट्रेन

बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं। अपना हैं चीथड़ों से गुजारा,गिनती के सरताज हैं। बुंदे टपक रही हैं छतों से, रोटी को मोहताज हैं। बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं। ये उनको अच्छा लगता हैं,जहाँ पे चीन जापान हैं। अपने यहाँ तो हर एक चौक पे,मिलता पाकिस्तान है। बेकारी बढ़ती ही जा रही, हलधर पे भी दाग हैं। बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं। व्यपारी भी लुटा पड़ा हैं,दुःख से सब बेहाल हैं। उसपे बढ़ गया कहर कोरोना,मौत का दिखता जाल है। रोटी, कपड़ा और मकान दो, पहले इनसे लाग हैं। बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं।                              अनिल कुमार मंडल                           रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

सबसे बड़ा हैं झूठ

सबसे बड़ा हैं झूठ जगत का,हमको मिली आजादी हैं। सच-सच क्यो नहीं कहते साहब,देश की ये बर्बादी है। गोरों के दिये बहुविधान से, लूट अभी तक जारी हैं। सत्ता का जब लेन-देन हुआ, लग गई नई बिमारी हैं। पहले गोरे-गोरे लुटेरे, ज्यादातर अब खादी है। सच-सच क्यो नही कहते साहब,देश की ये बर्बादी हैं। सबसे बड़ा हैं झूठ जगत का,हमको मिली आजादी हैं। आधी रात का समझौता ,गोरों ने दिया स्वराज था। सत्ता के भूखे लोगों ने, पाया अपना राज था। गोरों की सब शर्तें मान के,अब तक हारी बाजी हैं। सबसे बड़ा हैं झूठ जगत का,हमको मिली आजादी हैं। सच-सच क्यो नही कहते साहब देश की ये बर्बादी हैं।                           अनिल कुमार मंडल                       रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

झूठा क्यो इतिहास पढ़ाया

झूठा क्यो इतिहास पढ़ाया, धर्म के नाम पे हमें लड़ाया। देखो हम सच जान चुके हैं, तुमको हम पहचान चुके हैं। भाषा बदली,बोली बदली, गॉव की चनिया,चोली बदली। दाल रोटी जब, खाते थे हम, सबको गले लगाते थे हम। ऐसा भारत देश था अपना, अब जो मेरा बना हैं सपना। वही व्यवस्था गुरुकुल वाली, फिर से मुझको लानी हैं। वीर शहीदों के सपनों को, सच करने की ठानी हैं। संविधान में हो संसोधन, अब तक जो बईमानी हैं। हम बच्चे थे,हम भोले थे, अब तक हमनें मानी हैं। चिरंतन इतिहास को जाना, फिर हमनें ज़िद ठानी हैं। अंग्रेजी षड्यंत्र रचा कर, की गई कुछ शैतानी हैं। सत्ता मोह लंगोट के कच्चे, नर की भी नादानी हैं। अब जाकर ये जाना हमनें, की गई कुछ मनमानी हैं। युगों-युगों तक गाये दुनिया, जिसकी अमर कहानी हो। उस भारत का सृजन करें, दुनिया जिसकी दीवानी हो। बच्चा-बच्चा चन्द्रगुप्त गुरू में कौटिल्य की वाणी हो। बहने होवे झांसी रानी, जिनकी अमर कहानी हो। मौत हथेली रखने वाला, हर युवा बलिदानी हो।            अनिल कुमार मंडल         रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

संविधान बनवाने दो

बहुविधान को छोड़ो साथी, संविधान बनवाने दो । सात लाख बत्तीश हज़ार के,  सपनें मुझे सजाने दो । तथा कथित आज़ादी पायी,  पूर्ण स्वराज तो लाने दो । सत्ता का बस लेन-देन हुआ,  सबको अब समझाने दो । कुछ लोगों ने किया कलंकित,  काली घटा हटाने दो । माना थे सत्ता के लालची,  बीती बातें जाने दो । कानून से हुए तिलक जी घायल,  नामो निशाँ मिटाने दो । सुखदेव,भगत को कहे आतंकी,  जड़ से उसे मिटाने दो । इंडिया से अब पीड़ित हुए हम,  भारत मुझको बनवाने दो । जहाँ पे गुरू और गुरुकुल छूटा,  वही व्यवस्था लाने दो । मैकॉले के पुत्र जो टोके,  हिंदी में समझाने दो । जाति,धर्म से ऊपर उठकर  मानव मुझे बानाने दो । अटल सत्य अंतक जो आये,  साथ चलू कुछ पाने दो । क्षमा,दया,करुणा से लथपथ,  फिर से देश साजने दो । वैतरणी से सब तर जाए,  ऐसा कुछ कर जाने दो । हर एक जन्म का काम यह हो, भोला से वर पाने दो । सात लाख बत्तीश हज़ार के  सपनें मुझे साजने दो । बहुविधान को छोड़ो साथी,  संविधान बनबाने दो ।

सोई पड़ी जवानी से

ख़ौफ़ न मंदिर, मस्जिद से हैं, ख़ौफ़ नही गुरु वाणी से, हमको तो डर लगता हैं अब,  सोई पड़ी जवानी से। जाते-जाते बांट गये जो, गोरों की शेतानी से। सत्ता का जो लेन देन था, पुरखों की नादानी से। नादानी जो किये थे पुरखे,  निकले कैसे परेशानी से। हमको तो डर लगता हैं अब,  सोई पड़ी जवानी से। वीर पुत्र अब इक्के-दुक्के, मिलते माँ स्वाभिमानी से। लड़के देश के हुए नशेड़ी, लड़कर चुंदरी धानी से। लड़कियां भी सिगरेट फूंकती, माँ मुख मोड़े ग्लानि से, वीर न कोई पैदा हो फिर, ऐसी नर मर्दानी से। हमको तो डर लगता हैं अब,  सोई पड़ी जवानी से। पश्चिम की ये साजिश हैं,  सुन लो मंडल सेनानी से। नश्ले देश की बिगड़ चुकी हैं,  फिरंगी करदानी से। विकट समस्या का हल निकला, वेद की मीठी वाणी से। नर-नारी दोंनो तर जाए,  गुरुकुल जग कल्याणी से।2                       अनिल कुमार मंडल                    रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

देश की जाती शान बचा लो

हे। भारत के वीर जगो तुम, देश की जाती शान बचा लो। लहु से जिसने सींची धरती, उसकी तुम पहचान बचा लो मरते-मरते कहा था उसने, स्वदेशी है जान बचा लो। पश्चिम से तुम रिश्ता तोड़ो, खो रहे जो सम्मान बचा लो। हे।भारत के वीर जगो तुम,  देश की जाती शान बचा लो। अंग्रेजी तुम गिटपिट छोड़ो,  सरल हिन्दी से नाता जोड़ो। छोड़ दो खाना पिज़्जा,बर्गर, स्वदेशी हो जाये घर घर। शुद्ध शस्य जो खाओगे तुम, पाओगे इस तन का लक्ष्य तुम। जाहिरात से भ्रामित न हो तुम, सत्य सनातन ज्ञान बचा लो। हे।भारत के वीर जगो तुम,  देश की जाती शान बचा लो। चिरंतन इतिहास हैं अपना,  टूटे न वीरों का सपना। वेशभूषा अंग्रेजी त्यागो,  गौ माता की जान बचा लो। गाय बची तो बचेगा भारत,  वैदिक हिंदुस्तान बचा लो। हे।भारत के वीर जगो तुम, देश की तुम पहचान बचा लो। जड़ सबकी मैकॉले शिक्षा,  हमसे कहती माँगे भिक्षा। गुरुकुल जब तक रहा देश में, विश्व गुरु हम नहीं क्लेश में। वही व्यवस्था गुरूकुल वाली,  ला कर तुम जयगान बचा लो। हे।भारत के वीर जगो तुम, देश की जाती आन बचा लो।                   ...

हमारी कलम

जिस दिन हमारी कलम एक अंगार लेकर आयेगी उस दिन समझना देश मैं एक ज्वार लेकर आयेगी कलम ढोती हैं समर और शांति मय संसार भी रनभेरियो का रूद्र इसमें बाँसुरी का प्यार भी कलम जब अंगार लिखती भेद देते मन को हैं शब्द मे वो प्यार हैं जो त्याग दे जीवन को हैं हृदय सब का बदलेगा और सब रहे खुशहाली से कलंक से भयभीत होकर सब डरें महाकाली से चंद्रगुप्त, राणा के वंशज में जगे स्वाभिमान भी और कुछ बढ़कर संभाले क्रांति का कमान भी हर युवा इस देश का बजरंगी ये तो जानेगा गुप्त हैं जो शक्ति इनमें खुद को ये पहचानेगा मैं बनु जावन्त आकर शक्ति का उन्हें बोध दु या बनु मैं सिंधु आकर धर्य का रुख मोड़ दु स्वर्णिम बनेगा देश ये खुद पर मुझे विश्वास है हम कलम के वीर हैं लोगों की जगती आश हैं हम कलम के जरिये पथ साकार लेकर आयेंगे किससे कैसे लड़ना हर हथियार लेकर आयेंगे जानता हूँ राहे मुश्किल लेकिन मे न हारूँगा देश के मीरजाफरो को पहले सबसे मारूँगा हर आदमी खुशहाल हो बाजार लेकर आयेंगे   स्वदेशी और देश मै सहकार लेकर आयेंगे अंग्रेजियत का नाश कर,भारत पुनःबनबायेगे    मैं रहु या ना रहु कुछ नेक करते जायेंग  हैं कठिन ये कार्...