बुलेट ट्रेन

बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं।
अपना हैं चीथड़ों से गुजारा,गिनती के सरताज हैं।
बुंदे टपक रही हैं छतों से, रोटी को मोहताज हैं।
बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं।

ये उनको अच्छा लगता हैं,जहाँ पे चीन जापान हैं।
अपने यहाँ तो हर एक चौक पे,मिलता पाकिस्तान है।
बेकारी बढ़ती ही जा रही, हलधर पे भी दाग हैं।
बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं।

व्यपारी भी लुटा पड़ा हैं,दुःख से सब बेहाल हैं।
उसपे बढ़ गया कहर कोरोना,मौत का दिखता जाल है।
रोटी, कपड़ा और मकान दो, पहले इनसे लाग हैं।
बुलेट ट्रेन में कौन चढ़े जब,पेट मे लग रही आग हैं।
                             अनिल कुमार मंडल
                          रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद


Comments

Popular posts from this blog

Best hindi poem -मजदूर

पुस में नूतन बर्ष

देख तेरे संसार की हालत