सोई पड़ी जवानी से

ख़ौफ़ न मंदिर, मस्जिद से हैं,
ख़ौफ़ नही गुरु वाणी से,
हमको तो डर लगता हैं अब, 
सोई पड़ी जवानी से।
जाते-जाते बांट गये जो,
गोरों की शेतानी से।
सत्ता का जो लेन देन था,
पुरखों की नादानी से।
नादानी जो किये थे पुरखे, 
निकले कैसे परेशानी से।
हमको तो डर लगता हैं अब, 
सोई पड़ी जवानी से।
वीर पुत्र अब इक्के-दुक्के,
मिलते माँ स्वाभिमानी से।
लड़के देश के हुए नशेड़ी,
लड़कर चुंदरी धानी से।
लड़कियां भी सिगरेट फूंकती,
माँ मुख मोड़े ग्लानि से,
वीर न कोई पैदा हो फिर,
ऐसी नर मर्दानी से।
हमको तो डर लगता हैं अब, 
सोई पड़ी जवानी से।
पश्चिम की ये साजिश हैं, 
सुन लो मंडल सेनानी से।
नश्ले देश की बिगड़ चुकी हैं, 
फिरंगी करदानी से।
विकट समस्या का हल निकला,
वेद की मीठी वाणी से।
नर-नारी दोंनो तर जाए, 
गुरुकुल जग कल्याणी से।2
                      अनिल कुमार मंडल
                   रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद



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