जागो हिंद के वासी
हर घर हैं मानसिक गुलामी,इससे कैसे निकला जाए
जागो हिंद के वासी जागो,इसका कोई करो उपाय।
मैकाले की शिक्षानीति,दिया हैं इसका चलन बढाय,
चिरंतन इतिहास हमारा,पर दुनिया अब आँख दिखाय।
फिरंगी छलिये थे आये,भारत में गये लूट मचाये।
हमने दी थी जग को शिक्षा,चाल फिरंगी समझ न पाये
जागो हिंद के वासी जागो,इसका कोई करो उपाय।
अपने पुरखे वेद,सनातन,अतिथियों को गले लगाय।
फिर उनकी काली करनी को,क्षमादान कर खुशियाँ पाए।
पुरखो की दो यही कमजोरी,गारो का दिया दास बनाय।
गये अंग्रेज न गई अंग्रेजी,निति अपनी गया बनाया।
शर्ते पर दी हमें आज़ादी,जो गोरो के मन को भाये।
सत्ता के भूखे लोगों से,समझौता गोरे कर आये।
समझौता था आधी रात का,तथाकथित आज़ादी पाये।
एक कंपनी गई देश से,सेकड़ो ने लिया पेठ जामय।
फूट डालकर शासन कर गये,धंधा अपना लिया जमाय।
जागो हिंद के वासी जागो,इसका कोई करो उपाय।
हर घर हैं मानसिक गुलामी,इससे कैसे निकला जाय।
थोड़ा जो स्वाभिमान बचा था,मीडिया ने दिया उसे भुनाय
जाहिरात झूठे दिखलाकर,धंधा अपना खूब बढाय।
सोने की चिड़िया था भारत,शिक्षा पूरा जग ही पाय।
कुछ तो अपनी कमी हैं अब भी,मन की गुलामी छुट न पाय।
जागो हिंद के वासी जागो,इसका कोई करो उपाय।
तुम कुछ सोचो मैं कुछ सोचू,निराकरण बस एक उपाय।
गुरुकुल शिक्षा वापिस लाये,इंडिया से भारत बन जाये।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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