गीत आज़ादी का
शिक्षा हुई मैकाले वाली, मनोरंजन बर्बादी का। ऐसे भारत देश में कैसे, गाये गीत आजादी का। भाषा हो गई इंग्लिश,विंग्लिश भूषा रहा न खादी का। खान पान हुआ पिज्जा,बर्गर नुक्सा बचा न दादी का। रीत- रिवाज भी बदल गये, आनंद कहाँ अब शादी का। ऐसे भारत देश में कैसे, गाये गीत आज़ादी का। सुबह न मिलती राग भैरवी, शाम न किस्सा दादी का। बहु,बेटी पे नशा चढ़ा हैं, फिरंगी शहजादी का। फटी जीन्स में युवा थिरकते, ज्ञान बाटते गांधी का, माता,पिता को चिथड़े न दे बाँटे कंब्बल चाँदी का पंचभुत सब मैली हो गई बुरा हाल हैं वादी का। ऐसे भारत देश में कैसे, गाये गीत आज़ादी का। अनिल कुमार मंडल