दो जिस्म एक जान
अधरों को अधरों पर रखकर तन की अगन बुझाने दो। दो जिस्म एक जान हुए बिन,तुम मुझको न जाने दो। घडी दो घडी पास आ मेरे, सांसों को टकराने दो। हाथों का करतब दिखलाऊ, अंग अंग तक जाने दो। केशर वाला दूध पिलाया, को नस -नस में छाने दो तुमको बाहों में भर लू और थोड़ा मुझे सताने दो तेरी जवानी बंद कली सी,पुष्प इसे बन जाने दो। मैं अलि हूँ मकरंद का प्यास,जी भर कर रस पाने दो। कामसूत्र के ग्रंथो वाला, एक परिमेय तो पाने दो। लिप्सा हो दोनों की पूरी, ऐसा कुछ कर जाने दो। एक दूजे को सींचे हम तुम, बूँदों को बह जाने दो। स्पंदन हो चरम पे और, काया को स्थूलता पाने दो इसी पल को कहते हैं समाधि,क्षण भर को पा जाने दो। अधरों को अधरों पर रखकर,तन की अगन बुझाने दो दो जिस्म ए...