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Showing posts from December, 2021

दो जिस्म एक जान

अधरों को अधरों पर रखकर तन की अगन बुझाने दो।  दो जिस्म एक जान हुए बिन,तुम  मुझको  न जाने दो।  घडी  दो  घडी  पास आ मेरे, सांसों  को  टकराने  दो।  हाथों  का करतब  दिखलाऊ, अंग अंग तक जाने दो। केशर वाला  दूध  पिलाया, को नस -नस  में  छाने दो तुमको  बाहों  में  भर लू और  थोड़ा  मुझे सताने  दो तेरी  जवानी  बंद  कली  सी,पुष्प  इसे बन  जाने  दो।  मैं अलि हूँ मकरंद का प्यास,जी भर कर रस पाने दो। कामसूत्र  के  ग्रंथो  वाला, एक परिमेय  तो  पाने  दो।  लिप्सा  हो  दोनों  की  पूरी, ऐसा  कुछ कर  जाने दो।  एक  दूजे  को सींचे  हम तुम, बूँदों  को  बह जाने दो।  स्पंदन हो  चरम  पे और, काया  को  स्थूलता  पाने दो इसी पल को कहते हैं समाधि,क्षण भर को पा जाने दो।  अधरों  को अधरों पर रखकर,तन की अगन बुझाने दो दो  जिस्म  ए...

मुक्तक

  जिनको मैंने अपना माना वो तो संगदिल वाले थे। तन से गोरे,चिकने थे पर मन से बिल्कुल काले थे। कुछ दिन संग गुजरा हमने फिर जाकर ये जाना हैं, मैं तो ठहरा कीट- पतंगा, वो मकड़ी के जाले थे। २ दिलों जान से चाहा जिसको,उसने ही दिल तोड़ दिया। जीवन मेरा सरल,सुलभ था,उसने ही झकझोर दिया। उसके बिन जब जीना सिखा,अब उसकी दरकार नहीं उसके घरवाले ने आकर,फिर से रिश्ता जोड़ दिया। रिश्ता जोड़ा दिल नहीं जोड़ा,एक गाँठ जो बांकी थी, रिश्ता टूटने से पहले हमने भी, माँगी माफी थी। पर उसने दुत्कार दिया था,जैसे राह का कुत्ता में जीवन उनके संग चला,जो बीती वो बस झाँकी थी