साल बीत गया इक्कीस वाला

 साल  बीत  गया २१ वाला, २२  में  मेरा  घर  ला दो

मैं हूँ लड़की टिक टोक वाली,नये दौर का वर ला दो। 

दादा बाली बाग बेच दो, या फिर मुझको कर ला दो। 

तुम क्या जानो नये दौर का वर कितना प्यारा होता। 

माँ, बापू  को  साथ  न  रखे, टाॅमी  सा न्यारा होता। 

चिड़िया  के जगने से पहले, बिस्तर  से उठ जाता वो

दूध भी लाता चाय बनाता,चाय पिला कहे सो जाओ

बिन कहे  झाड़ू, पौछा,करता बर्तन  खुद ही धो लेता। 

भीगी बिल्ली बन जाता,आँखों में जरा असर ला दो। 

ऐसा  एक जीवंत खिलौना, बापू  सुनो मगर ला  दो। 

मैं हूँ लड़की टिक टोक वाली,नये दौर का वर ला दो। 

साल  बीत  गया २१ वाला, २२  में  मेरा  घर  ला दो

दादा बाली बाग बेच दो, या फिर मुझको कर ला दो। 

हाई हिल की सैंडिल पहनू या फटी जीन्स बजारो में। 

मुझको  न  वो  रोके  टोके  मैं  रहू  लाख  हज़ारो  में। 

माँग मैं अपनी सुनी रखू  या मैं  तिलकित भाल  रखू। 

होठों पर होठ लाली हो  या चिकनी अपनी गाल रखू। 

गुपचुप रहकर जुर्म सहे वो, धन, दौलत से तर ला दो। 

मैं  हूँ  लड़की टिक टोक वाली,नये दौर का वर  ला दो। 

दादा  बाली बाग बेच दो, या फिर  मुझको कर  ला दो। 

खूब दहेज दो बंगला,गाड़ी या फिर कर स्वमवर् ला दो। 

साल  बीत  गया २१ वाला, २२  में  मेरा  घर  ला दो। 

मैं  हूँ लड़की टिक टोक वाली,नये दौर का वर ला दो। 

               कवि- अनिल कुमार मंडल




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