आफताब सा जलना होगा
मानसिक गुलामी मे हैं भारत,
लेकिन मे नही सहता हूँ
एक मेरी मसबारा मानकर,
इस बेड़ी को तोड़ो तुम
जो भी हो अवरोध राह मे,
उसको भी न छोड़ो तुम
जुगनूओ ने भ्रमित किया हैं,
आफताब सा जलना होगा
संग ज्ञान का दीप जलाकर
सच को बाहर करना होगा
कुछ बधिर भी सुनेगा हमको
शंखनाद अब करना होगा
मानव तन में जन्म लिया तो
नेक कर्म कुछ करना होगा
सौ तारों के बीच हमे अब
आफताब सा जलना होगा
भय का जो बाजार खडा हैं
हमको इससे लड़ना होगा
अपनी नस्ल बचाने खातिर ,
आफताब सा जलना होगा
मस्त पवन की रोटी खाकर,
काँटों पे अब चलना होगा
कवि- अनिल कुमार मंडल
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