इतना भी आसान नहीं
भारत देश में रेल चलना, इतना भी आसान नहीं
रात- रात भर आँखे फोडू, मिलती हैं पहचान नहीं
कई परीक्षा,और परीक्षण देकर इसको पाता हूँ
दिनचर्या सब उल्टी सीधी रोग शरीर में लाता हूँ
लघुशंका, बड़ीशंका रोके इसमें तो सम्मान नहीं
भारत देश में रेल चलना, इतना भी आसान नहीं
रात - रात भर आँखे फोडू, पाता इसका दाम नहीं
पढ़ा लिखा मुझे रेल न माने, उत्तरदायी सब दे डारे
घर में हम अतिथि बन बैठे, रिश्तेदार कहे हम ऐठे
कितनो से हुई तू- तू म्ये म्ये सरकारी मेहमान नहीं
भारत देश में रेल चलना इतना भी आसान नहीं
रात - रात भर आँखे फोडू, मिलती हैं पहचान नहीं
कभी- कभी दुविधा में रहते,खा ले या भूखे सो जाए
रोजी रोटी यही हमारी, इससे दूर कहाँ हम जाए
पानी पी भूखे सो जाना, क्या तन का अपमान नहीं
भारत देश में रेल चलना इतना भी आसान नहीं
रात - रात भर आँखे फोडू, पाता इसका दाम नहीं
बीबी कहती मुझे निशाचर,लूट गई मैं ऐसो वर पाकर
कितनों को तो ये लगता हैं, लौटा हूँ विदेश में जाकर
अपनी व्यथा कहां तक गाये देता कोई ध्यान नहीं
भारत देश में रेल चलना इतना भी आसान नहीं
रात - रात भर आँखे फोडू, मिलती हैं पहचान नहीं
कवि- अनिल कुमार मंडल
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