पुस में नूतन बर्ष
पुस में नूतन वर्ष मनाना,
फिरंगी का वार हैं ये।
पश्चिम को पुरब में लाने,
का समझो हथियार हैं ये।
तुम कहते हो स्वागत कर ले
पर हम पे धिक्कार हैं ये।
गोरो का त्योहार मनाना,
खूनी का सत्कार हैं ये।
भूल गये उनकी बर्बरता,
भूल गये क्यों फांसी को।
भूल गये क्यों रणचंडी को,
खोयी जिसने झाँसी को।
मूढ़ हैं जो पश्चिम में डूब के
भूले, मथुरा, कासी को।
हम हैं गदर के भटके राही,
उचित नहीं व्यवहार हैं ये।
तुम चाहो तो रंग बदल लो,
मेरा सच्चा प्यार हैं ये।
पुस में नूतन वर्ष मनाना,
मुझको न स्वीकार हैं ये।
फिरंगी नव वर्ष मनाना,
खूनी का सत्कार हैं ये।।
कवि:- अनिल कुमार मंडल
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